Sunday, December 28, 2008

The Ghalib in me

कभी कभी मेरे दिल में ख्याल आता है
और वो नगमा बन के ब्लॉग में उतर जाता है


Something I wrote long back. When my second post was in the making ... ;)


आज किस्सा कुछ ऐसा हुआ ...

आज किस्सा कुछ ऐसा हुआ, किसी अपने से ही झगडा हुआ
रूठी रूठी सी नींद है प्यारी, पर बात उसने भी थी न मानी हमारी
खयालो में था जिसके मैं, कहा उसको भुला दो,
"बसा लो मुझे नैनो मैं, ख्वाबों मैं मुझे भी तो मिला दो"
कहा मैंने पलट कर "ख्वाबो का क्या भरोसा
कभी आते हैं कभी जाते हैं,
बहुत मुश्किल से ख्याल आया है उनका
दिन भर मशरूफ रहते हैं हम,
उनके बारे में कहाँ सोच पाते हैं"
"फ़िक्र है तुम्हे उस बेवफा का, जो इतराते हैं ख्याल में आने से,
भूला दिया मुझे तुमने जो साथ है तुम्हारे ज़माने से"
"ख्वाबो से ज़यादा बेरहम तो ख्याल होते हैं,
छूते नहीं है वो जिगर को, न नैनो मैं बसते हैं
मेहमान हैं वो पल दो पल के, आयेंगे और बेरहमी से चले जायेंगे ,
वो तो बस ख्वाब ही हैं जो दिल-ओ-दिमाग मैं बस जायेंगे "
मुश्किल था नींद से इस कदर जीत पाना, हमने भी मसला निपटा डाला,
कर दिया ख़ुद को कायल ख्वाबो के, होश अपना खो डाला
कुर्बान हैं जन्नतें हजारो उस एक ख्वाब के बदले,
जिसे देखे बिना जिगर ये तडपे
"ए नींद अब धोखा देके तू न चली जाना,
वादा किया था उन्होंने ख्वाबो मैं आने का,
बेवफा नहीं हैं वो, इस बात का ईमान रख जाना"